अगर आप भी भगवान गणेश की प्रतिमा घर में विराजते हैं तो इन बातों की जानकारी आपको जरूर होना चाहिए?

Do you know??

क्या कभी आपने ध्यान दिया है कि भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों में उनकी सूंड दाई या कुछ में बाई ओर होती है और कोई मे सीधी सूंड वाले गणेश भगवान भी होते हैं क्या कभी आपने सोचा है ऐसा क्यों अगर नहीं सोचा है तो आइए आपको इसकी पूरी जानकारी आज आपको देते हैं




अक्सर श्री गणेश की प्रतिमा लाने से पूर्व या घर में स्थापना से पूर्व यह सवाल सामने आता है कि श्री गणेशजी की कौन सी सूंड वाली प्रतिमा होनी चाहिए जिसकी घर में पूजा की जाए दाईं सूंड या बाईं सूंड  यानी किस तरफ सूंड वाले श्री गणेश पूजनीय हैं घर में? आइए जानें वैसे  भगवान श्री गणेश सारे रूप में पूज्यनीय है लेकिन कुछ रूपों में भगवान गणेश जी  को पूज्य ने योगऔर उनकी विधिवत सेवा करने योग्य याचक ही नहीं रहते जिसके कारण उनकी घर में पूजा  कर पाना मुमकिन नहीं है आइए हम जानते हैं घर में पूजा योग मूर्ति कौन सी होती है और मंदिर में पूजा करने वाली मूर्ति कौन सी होती है और घर में और मंदिर में दोनों जगह पूजा योग करने वाली  प्रतिमा कौन सी होती है भगवान गणेश जी की


विद्वानों का कहना है दाईं सूंड : जिस मूर्ति में सूंड के अग्रभाव का मोड़ दाईं ओर हो, उसे दक्षिण मूर्ति या दक्षिणाभिमुखी मूर्ति कहते हैं। यहां दक्षिण का अर्थ है दक्षिण दिशा या दाईं बाजू। दक्षिण दिशा यमलोक की ओर ले जाने वाली व दाईं बाजू सूर्य नाड़ी की है। जो यमलोक की दिशा का सामना कर सकता है, वह शक्तिशाली होता है व जिसकी सूर्य नाड़ी कार्यरत है, वह तेजस्वी भी होता है।

धर्म शास्त्रों में भगवान श्री गणेश के अनेक नाम बताए गए हैं। उन्हीं में से एक नाम है वक्रतुंड, जिसका अर्थ है भगवान गणेश का वह स्वरूप जिसमें उनकी सूंड मुड़ी हुई होती है। श्री गणेश के इस स्वरूप के भी कई भेद हैं। कुछ मुर्तियों में गणेशजी की सूंड को बाईं को घुमा हुआ दर्शाया जाता है तो कुछ में दाईं ओर।

कुछ विद्वानों ने भगवान श्रीगणेश की घुमी हुई सूंड के पीछे भी कई तर्क दिए हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि दाईं ओर घुमी सूंड के गणेशजी शुभ होते हैं तो कुछ का मानना है कि बाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ फल प्रदान करते हैं। हालांकि कुछ विद्वान दोनों ही प्रकार की सूंड वाले गणेशजी का अलग-अलग महत्व बताते हैं।


उनके अनुसार-   
यदि गणेशजी की स्थापना घर में करनी हो तो दाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी शुभ होते हैं। दाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी सिद्धिविनायक कहलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सिद्ध हो जाता है। किसी भी विशेष कार्य के लिए कहीं जाते समय यदि इनके दर्शन करें तो वह कार्य सफल होता है व शुभ फल प्रदान करता है।इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी रहती है व वास्तु दोषों का नाश होता है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार घर के मुख्य द्वार पर भी गणेशजी की मूर्ति या तस्वीर लगाना शुभ होता है। यहां बाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी की स्थापना करना चाहिए। बाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी विघ्नविनाशक कहलाते हैं। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बाधाएं बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो  इनके दर्शन मात्र के प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी शरीर से बाहर हो जाती हैं और वहीं रुक जाती है वह नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं
1. सूंड का रखें ख्‍याल: इसके अलावा जब आप अपने घर के लिए गणपति जी की मूर्ति खरीदें तो एक महत्वपूर्ण बात याद रखना आवश्यक है - गणपति की सूंड दाहिनी ओर न हो।
2. जब सूंड हो दाहिनी ओर: दाहिनी ओर की सूंड वाले गणपति की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है तथा इनके लिए विशिष्ट पूजा की आवश्यकता होती है। आप इन आवश्यकताओं की पूर्ति घर पर नहीं कर सकते और यही कारण है कि इस प्रकार की गणपति की मूर्ति केवल मंदिरों में ही मिलती है।
अत: घर में बाईं ओर की सूंड वाले, सीधी सूंड वाले या हवा में सूंड वाले गणपति की मूर्ति ही रखें।
गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की और सूंड वाली होती हैं। मान्यता है कि गणेश जी की मूर्त जब भी दक्षिण की और  मुड़ी हुई बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्त मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभिष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का और दाईं में सूर्य का प्रभाव माना गया है। 
गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाऔ से दिखती है। जब सूंड दाईं और  घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। एसी प्रतिमा का पूजन विघ्न-विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन जैसे कार्यों के लिए फलदायी मानी जाती है।
वहीं बाईं और मुड़ी सूंड वाली मूर्त को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। एसी  मूर्त  की पूजा स्थायी कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य और पारिवारिक खुशहाली प्रदान करते हैं। इसलिए पूजा में अधिकतर वाममुखी गणपति की मूर्ति रखी जाती है। इसकी पूजा प्रायिक पद्धति से की जाती है। इन  गणेश जी को गृहस्थ जीवन के लिए शुभ माना गया है। इन्हें विशेष विधि विधान की जरुरत नहीं लगती। यह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। थोड़े में ही संतुष्ट हो जाते हैं। त्रुटियों पर क्षमा करते हैं। 


सीधी सूंड वाली मूर्त का सुषुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज एसी मूर्त की ही आराधना करता है। सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं और सूंड वाली मूर्त है इसीलिए इस मंदिर की आस्था और आय आज शिखर पर है।
इन दोनों अर्थों से दाईं सूंड वाले गणपति को 'जागृत' माना जाता है। ऐसी मूर्ति की पूजा में कर्मकांडांतर्गत पूजा विधि के सर्व नियमों का यथार्थ पालन करना आवश्यक है। उससे सात्विकता बढ़ती है व दक्षिण दिशा से प्रसारित होने वाली रज लहरियों से कष्ट नहीं होता।
दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा सामान्य पद्धति से नहीं की जाती, क्योंकि तिर्य्‌क (रज) लहरियां दक्षिण दिशा से आती हैं। दक्षिण दिशा में यमलोक है, जहां पाप-पुण्य का हिसाब रखा जाता है। इसलिए यह बाजू अप्रिय है। यदि दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें या सोते समय दक्षिण की ओर पैर रखें तो जैसी अनुभूति मृत्यु के पश्चात अथवा मृत्यु पूर्व जीवित अवस्था में होती है, वैसी ही स्थिति दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा करने से होने लगती है। विधि विधान से पूजन ना होने पर यह श्री गणेश रुष्ट हो जाते हैं। 


वक्र तुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ: !
निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !!


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